अब कितना और दबाओगे सरकार!
खान अशु
कल कह रहे थे कि हम रजवाड़े नहीं, जो कोई भी हमारे करीब ना आ सके, हम जमीनी लोगों के साथ कोई भी फोटो सेशन करवा लेता है। लेकिन अब ऐसा क्या हुआ कि तस्वीर 'चोर की दाढि में तिनका' के माहौल में बदल गई! खिसियानी बिल्ली खम्भा ना नोचे तो क्या करे! अभिव्यक्ति की आजादी का दमन करने में कोई गुरेज नहीं किया गया। आईएसआई एजेंटों से ताल्लुक रखने वाले तथाकथित भाजपाइयों के खिलाफ नारेबाजी करने वाले कांग्रेसियों को इन्दोरी भिया के लोगों ने दौड़ा-दौड़ाकर मारा। सुरक्षा की जिम्मेदारी रखने वाले पुलिस थाने के लोग भी इस तमाशे के गवाह बने, किसी को रोकने की न तो जुर्रत की, न ही जरुरत समझी। मप्र की व्यवसायिक राजधानी इन्दोर में हुआ यह किस्सा पहला नहीं है, चन्द दिनों पहले राजधानी भोपाल में भी ऐसा दमनचक्र घूम चुका है। विपक्ष की भूमिका से हमेशा अनजान रहे बेचारे कांग्रेसियों को कभी-कभार ही तो विरोध, प्रदर्शन, धरनो, नारेबाजियो की सलाहियत होती है, उनके इस अधिकार को भी इस तरह छीन लिया जाना कहाँ की चरित्रवादी परम्परा है सरकार, यह चाल तो दमनकारी है, इससे चेहरा धूमिल हुए बिना कैसे रह पाएगा? आप चलते नोट बन्द कर दो, कोई कुछ न कहे! आप बिना दोष साबित हुए कैदियों को जेल से निकालकर सजा-ए-मौत दे दो, कोई कुछ न कहे! आप दुश्मन देश के मददगारों को सिर्फ इसलिए बचाने की कोशिश करो कि वे सबके सब एक कौम खास के न होकर एक पार्टी खास के करीबी हैं, फिर भी कोई कुछ न कहे! पिछले करीब तेरह के ऊपर करीब तीन साल का काकटेल का दौर, क्या-क्या नहीं हुआ, लेकिन साहब कोई कुछ न कहे! आजाद मुल्क, लोकतंत्र का मुजस्सिमा और सबके लिए, सबके द्वारा, सबकी चुनी गई सरकार की परिकल्पना काफुर होती नजर नहीं आ रही है क्या?
पुछल्ला
राजा और प्रजा
राज गया, रजवाड़ा गया, लेकिन नहीं गई तो राजशाही! राजाओं के ठसके अभी बरकरार हैं, राजाजी(?) ने एक तडपते, मचलते, मौत की आगोश में समाए इन्सान (शायद इन्सान नहीं) को मरने के लिए छोड़कर इस बात को साबित कर दिया। इलाका (गुना), राजा साहब यहां के सान्सद और मरने के लिए छोड़ दिया गया बन्दा उनका अपना वोटर।
Comments
Post a Comment