काश भ्रष्टाचारियों का मुंह काला करने के अधिकार नागरिकों के पास होता?



भोपाल। बीत गए सात दशक फिर भी यह जनजातियों का क्यों नहीं हो पाया उद्धार जातिगत आधार पर दल राजनीति से तात्पर्य अनुसूचित जाति, जनजाति, दलित, पिछड़ा वर्ग ही देश में भरमार जो है लगभग 75% जनसंख्या के पार ! जातिगत राजनीति के मसीहा तुम बोलो लालू, मुलायम, नीतीश और माया के राज पाठ में तो अपरंपार जिसके कार्यकाल में फैला था मायाजाल ! हां यह सत्य ही नहीं कड़वा सत्य है सत्य है सत्य है सत्य बोलो सत्य है कि चपरासी से लेकर क्यों न हो बड़ा अधिकारी नेता सब के सब भ्रष्ट माया के साम्राज्य में माया का बोलबाला जिसके तहत 28 मंत्री हुए थे बाहर !
      सात दशक बाद भी अनुसूचित जाति, जन जाति, दलित, पिछड़ावर्ग का नहीं हुआ विकास ! उनको समुचित अधिकार दिलाने, जातिगत राजनीति से हुआ देश का बंटाधार!फिर भी देखो जातिगत राजनीति करने वाले भरते हैं हूंकार की अनुसूचित जाति, जनजाति, दलित, पिछड़े वर्गों को मान-सम्मान दिलाएंगे फिर इनकी सरकार बनी तो पिछले कार्यकाल की भ्रष्ट नीतियां नहीं अपनाएंगे !
      दूसरी तरफ भी देखता हूं मैं एक शेयर ब्रोकर जो सांठगांठ कर अपना हर क्षेत्र में ऐसा क्या कर जाता है जो टाटा बिरला को पछाड़कर देश का सबसे बड़ा रईस बन जाता है ! धन दौलत के आगे बने भिकारी नेता और अधिकारी ! भारत माता के सपूतों राजनीति में क्या क्या से क्या क्या नहीं हो जाता है ! बिन भूमि स्वामी बने वह औरों की भूमि पर कब्जा कर मालिक बन जाता है, अब भूमि स्वामी किसे सुनाए अपनी व्यथा की गाड़ी खून कम पसीने की कमाई से खरीदी भूमि को नेता अधिकारी मिल-जुलकर खुर्दबुर्द करते हैं उसके सपनों का घर !
      हां लेखक भी सूरदास की तरह जनता के आगे कबीर के दोहे से लेख पद्धति अपना आता है सब मिलजुलकर देश लूट रहे तू मेरी नहीं मैं तेरी नहीं यही वैलेंटाइन डे की दोस्ती पूरे 5 साल अपना आता है !
                    "अब तो वैचारिक द्वंद हैं "
                @मो. तारिक (स्वतंत्र लेखक)

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