9 लाख के टेंडर पर दी 29 लाख की स्वीकृति, चहेते ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने को नियम-कायदे खूंटी पर


सौरभ उपाध्याय
फिरोजाबाद। कमीशन खोरी और भ्र्ष्टाचार को लेकर बदनाम नगर निगम में एक और मामला इन दिनों चर्चा में बना है। बताते चले नगर निगम परिसर में एक जर्जर इमारत को तुड़वाकर नया निर्माण कार्य कराया जा रहा है। जिसमे नियमों की अनदेखी व जमकर मनमानी की जा रही है। सुना जा रहा है टेंडर प्रक्रिया में अनियमितता के साथ निर्माण कार्य में भी घटिया सामिग्री का प्रयोग व पुरानी जर्जर टूटी बिल्डिंग से निकली ईटो का इस्तेमाल किया जा रहा है।
कमीशन खोरी की चक्का चौंध में नगर निगम प्रशासन धृतराष्ट्र बना हुआ है। जेब भरने के चक्कर में भृष्ट अधिकारी नियमों को भी ताक पर रखे हुए हैं। आलम यह है कि अपने चहेते व मोटा कमीशन देने वाले ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए अधिकारियों ने टेंडर प्रक्रिया को भी ताक पर रख दिया है।
गौरतलब है कि लगभग 2 वर्ष पूर्व नगर निगम परिसर स्थित लेखा अनुभाग की छत निर्माण का टेंडर निकाला गया था। जो नौ लाख में अधिकारियों के चहेते व मोटा कमीशन देने वाले निगम ठेकेदार महेश चंद्र अग्रवाल को दिया गया था।  ठेकेदार द्वारा उस वक्त काम नही करवाया गया। जिसको लेकर न तो निगम प्रशासन ने जर्जर छत की मरम्मत की कोई अन्य व्यवस्था की, ना ही ठेकेदार के खिलाफ नियमित कोई कार्रवाई की।
लेकिन लगभग दो वर्ष बाद अचानक निगम प्रशासन ने बिल्डिंग के निर्माण की सुध लेते हुए उसी ठेकेदार को दो वर्ष पूर्व में हुए 9 लाख के टेंडर पर ही करीब 29 लाख के निर्माण कार्य की स्वीकृति दे दी। जिससे साफ तौर पर अधिकारियों की मंशा पर प्रश्न चिन्ह लगता है।

कार्य न होने पर टेंडर प्रक्रिया निरस्त होने का है नियम

निगम सूत्रों की माने तो किसी भी टेंडर प्रक्रिया के तय समय में कार्य पूरा या शुरू न होने की दशा में ठेकेदार द्वारा दी गयी जमानत की रकम को जब्त कर टेंडर निरस्त करने का प्रावधान हैं लेकिन अपने चहेते ठेकेदार को फायदा पहुचाने के चक्कर में निगम अधिकारी टेंडर नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।

अधिकतम पच्चीस प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है कीमत

जानकारों की मानें तो टेंडर रिवाइस की स्थिति में भी पूर्व में दी गई शर्तो के आधार पर दस से पच्चीस प्रतिशत तक ही कार्य की कीमत बढ़ाई जा सकती है। लेकिन पूरे मामले में अधिकारियों ने आंख मूंद कर नियमों की धज्जियां उड़ाई हैं। दो साल पुराने इस टेंडर में रिवाइस प्रक्रिया को भी ताक पर रखा गया है। 9 लाख कीमत के टेंडर में करीब 350 प्रतिशत के बढ़ोतरी के साथ उसी दागी ठेकेदार को नियमों की अनदेखी कर दे दिया गया। जो पूर्व में भी कार्य मे बिफल था।

कर्मचारियों के जीवन से खिलवाड़
 सूत्रों की मानें तो प्रशासन ने जिस नियत से पुनिर्माण की स्वीकृति दी है असल मे उसी की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।नाम न छापने की शर्त पर निगम कर्मचारी बताते हैं कि मरम्मत कार्य में घटिया सामग्री का प्रयोग किया जा रहा है कार्य मे सामग्री  के तय  मानकों को भी अनदेखा किया जा रहा हैं। निर्माण कार्य मे बालू की जगह रेत (डस्ट) का प्रयोग किया जा रहा है। जिसका खामियाजा भविष्य में इमारत में बैठने वाले कर्मचारियों को किसी अनहोनी से चुकाना पड़ेगा।

 जिम्मेदारों को नहीं जानकारी,, झाड़ रहे पल्ला

 वहीं जब पूरे मामले की जानकारी के लिए प्रभारी नगर आयुक्त प्रमोद कुमार से फोन पर बात की गई तो टेंडर रिवाइस किये जाने की बात स्वीकारी लेकिन टेंडर नियमों के विपरीत कार्य पास करने के प्रश्न पर है करीब बैठे चीफ इंजीनियर जितेंद्र केन को फोन थमा दिया, जिस पर जितेंद्र ने जानकारी न होने का बहाना बनाते हुए पल्ला झाड़ लिया। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर किस लालच में जिम्मेदार मामले की जानकारी न होने का रटा रटाया डायलोक दे रहे हैं।
 जितेंद्र केन भी रिवाइस की बात कही लेकिन जब उन्हें हमारे संवाददाता ने रिवाइस प्रक्रिया में टेंडर के समय दी गयी शर्तो में दस से पच्चीस प्रतिशत तक ही पैसा बढ़ाने एवं समयाविधि में कार्य पूरा न होने पर टेंडर निरस्त का नियम बताया तो उन्होंने जानकारी न होने और फाइल देखकर जानकारी करने की बात कही। आगे पूछने पर पूरी जानकारी देने से पहले ही फोन काट दिया।

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