आज़म खान और हाफिज सईद में कोई फर्क नहीं है..


आज से करीब आठ-नौ वर्ष पहले एक चैनल के संपादक महोदय से मैंने पूछा था कि आज़म खान के बारे में उनके क्या विचार हैं । ध्यान रहे, तब देश में गंगा-जमनी तहजीब की तरंगें बह रही थीं । न कोई गौरक्षक था,न भगवाधारी भूत गणादि की सेनाएं ! कांग्रेस की समावेशी सरकार में देश दमक रहा था, लेकिन माननीय आज़म खान का एक साक्षात्कार सुन कर मैं उनसे वह सवाल पूछने को बाध्य हुआ ।  संपादक जी ने बड़े ही आत्मविश्वास और प्रसन्नता के साथ कहा, बड़े ज़हीन आदमी हैं आज़म खान ।

तब आजम खान उस साक्षात्कार में बार-बार एक ही बात दुहरा रहे थे कि बाबरी मस्जिद तोड़कर अच्छा नहीं किया । और हर बार उनके मन में बीजेपी और संघ वालों के लिए भरी घृणा को महसूस किया जा सकता था । फिर कई और मौके आए जब आजम खान और अमर सिंह के झगड़े में उनका असल रंग खुल कर खिला । अपनी टिप्पणियों से आजम खान न सिर्फ अमर्यादित हुए बल्कि भयंकर यौन कुंठित भी साबित होते रहे । जयाप्रदा के बारे में उनकी टिप्पणियां विकृत थीं । इन वर्षों में आजम खान गाहे बगाहे महिलाओं पर छींटाकशी करते रहे हैं । हर बार संघ के बहाने उन्होंने कभी मोदी को गरिया दिया है तो कभी संघ के कार्यकर्ताओं पर ओछी टिप्पणियां की हैं, क्योंकि वे अविवाहित रहते हैं ।आजम खान के मुताबिक जो विवाह नहीं करते वे नपुंसक होते हैं क्योंकि उन्होंने अपने जीवन और धार्मिक समझबूझ से  न तो कभी ब्रह्मचर्य का तेज जाना है न उस साधना प्रक्रिया को समझा है, जिसके सहारे भारत में हजारों साल से संसार को समझने की कोशिशें होती रही हैं । आज़म खान और तकरीबन 99 फीसदी मुसलमानों के लिए औरत सेक्स की मशीन है और बच्चा पैदा करने का एटीएम । ये इतने कुंठित और भुक्खड़ कौम है कि अपनी औरतों को काले परदे में ढंक कर दुनिया भर के वीभत्स पॉर्न देखने के लिए अपनी जीभ लपलपाती फिरती है । तीन साल पहले एक अमेरिकी कमांडर ने खुलासा किया था कि ज्यादातर मुजाहिदीनों के लैपटॉप का अस्सी फीसदी स्पेस पॉर्न फिल्मों से ठंसा पड़ा रहता है। लेकिन जन्नत के रास्ते में कीच़ड़ का नाला भी पार करना ही होता है दोस्तो, क्या करें !

कल जब इस आजम खान ने देश के फौजियों का प्राइवेट पार्ट काट कर ले जाने वाले दहशतगर्दों को इस तर्क से ढंकने की कोशिश की कि गुप्तांग काट लेने की घटना कश्मीर में सेना के हाथों में बलत्कृत होने वाली महिलाओं की प्रतिक्रिया है, तब ये साफ हो गया कि आजम खान और हाफिज सईद में कोई फर्क नहीं है ।  अफसोस बस ये है कि आज़म खान इस देश में लोकतांत्रिक रूप से चुना जाता है और मुसलमानं द्वारा सुना भी जाता है ।  और फिर वही मुसलमान यह भी कहता है कि हिंद हमारा भी उतना ही है जितना कि तुम्हारा । दरअसल इस सांप्रदायिकता का कोई समाधान नहीं है । मुसलमान जहां भी रहते हैं  और जब निर्णायक आबादी में रहते हैं तब वह देश भोगता है । भारत के भाग्य में भोगना लिखा है । इसमें मुसलमानों का कोई दोष नहीं, ये उनकी मैन्यूफैक्चरिंग गड़बड़ी है जिसे सुधारना या दुरुस्त करना असंभव है।
Devanshu Jha जी की वाल से

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