जजों का जमानत-कांड: मुफ्त में मारे गये गुलफाम


कुमार सौवीर
लखनऊ : जॉली एलएलबी फिल्‍म तो आपने देखी ही होगी। रोड-एक्‍सीडेंट में पकड़े गये और शराब में धुत्‍त एक अमीरजादे को जेल से बचाने के लिए हरचंद कोशिशें होती हैं, और राजपाल नामक का एक नामचीन वकील जॉली नामक वकील को इस मामले की बुनावट में शामिल होने के लिए बीस लाख रूपयों का भुगतान होता है। रात को यह डील केवल दो लोगों में होती है, और एडवांस के तौर पर जॉली को दो लाख रूपयों का भुगतान हो जाता है। लेकिन सुबह तक पूरे अदालत परिसर में हल्‍ला मच जाता है कि दो लाख एडवांस समेत बीस लाख रूपयों की डील हो चुकी है। चाय बेचने वाला एक बुजुर्ग व्‍यक्ति भरी अदालत में जॉली के गाल पर तमाचा जड़ता है। और अगली सुनवाई में ही जज ही वकील को अपने चैम्‍बर में उलाहना देता है कि:- वकील साहब। न्‍याय अंधा होता है, लेकिन जज नहीं।

आप सेशंस कोर्ट जाइये, या फिर हाईकोर्ट। और तो किसी तहसील कोर्ट जाइये, या फिर कलेक्‍ट्री अथवा उपभोक्‍ता या फिर कमिश्‍नरी की किसी कोर्ट में। सब का सब कामधाम ठीक उसी तरह चल रहा है, जैसे हमेशा से ही चलता ही रहा था। न पीठासीन अधिकारी पर कोई फर्क पड़ा है, और न ही वकीलों पर। पता ही नहीं चलता कि यह वही अदालत-जजों का माहौल है, जहां एक बलात्‍कारी, माफिया और समाजवादी पार्टी के नेता गायत्री प्रजापति को जमानत देने के मामले में दस करोड़ रूपयों की डील हो चुकी है।

इतना ही नहीं, इस मामले की खुफिया रिपोर्ट का जिक्र करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश डीबी भोंसले ने लखनऊ के पॉक्‍सो और अपर जिला सेशंस जज ओपी मिश्र को निलम्बित कर दिया है और लखनऊ के जिला न्‍यायाधीश राजेंद्र सिंह को उसी मामले में चंदौली भेजा जा चुका है। इसी जिला जज को हाईकोर्ट में होने वाली नियुक्ति पर तलवार चल चुकी है, और मामला गंभीर जांच के दायरे में आ चुका है।

हां, बहुत निजी बातचीत में बोलते हैं, उनका भी कहना यही है कि केवल पॉक्‍सो जज ओमप्रकाश मिश्र तो एक मोहरा भर हैं, जबकि राजेंद्र सिंह की हालत पेपरवेट की रही है। ऐसी हालत में सवाल यह उठता है कि तब वह कुल कलंक है, जिसने बिसात पर ऐसे-ऐसे सटीक पांसे कैसे बिखारे, जिसमें दस करोड़ की डील हो गयी। सेशंस कोर्ट के वकीलों के एक चैम्‍बर में देर रात इस सवाल को वहां मौजूद तीन वकीलों से बातचीत हुई। उनका भी यही कहना है कि जिस तरह में चावल की ढेरी में बड़ा कंकड़ साफ दिख जाता है, ठीक उसी तरह वकीलों की भीड़ में तीन कुल-कलंक वकीलों को खोजना कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन उससे भी ज्‍यादा आसान तो यह खोजना है, कि किस शख्‍स ने राजेंद्र सिंह और ओमप्रकाश मिश्र के लिए इतनी सटीक गोटियां बिछायी थीं।

लेकिन इतनी बातचीत के बावजूद कोई भी यह कहने की हैसियत नहीं जुटा पा रहा है कि आखिर वह कुल-कलंक कौन है।

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