मीडिया के मुंह पर नोटों की गड्डी मारो और बन जाओ बने नेता
कुमार सौवीर
लखनऊ : आज फिर चमत्कार हो गया। सुबह-सुबह हॉकर ने अखबारों का बण्डल दरवाजे पर रखा। लेकिन जैसे ही मैंने उन अखबारों के पन्ने पलटना शुरू किया, पाया कि शशिमा सिंह मौजूद हैं। हर अखबार के मुख्य-पृष्ठ पर शशिमा सिंह का रंगीन विज्ञापन। योगी के कद के बराबर। विशालकाय होर्डिंग को मात करते हुए। पूरे पेज का विज्ञापन, जिसमें योगी आदित्यनाथ की सरकार के 100 दिनों की बधाई छापी गयी है। एक कोने में टिकट-साइज में अमित शाह और नरेंद्र मोदी की फोटो किसी औपचारिकता के लिए चिपकायी लगती है।
हैरत की बात है कि अभी तीन हफ्ता पहले भी इन्हीं शशिमा सिंह ने इसी तरह का एक अभियान छेड़ा था, जिसमें योगी आदित्यनाथ के जन्मदिन की बधाई गयी थी। पूरे पेज, पहला पन्ना। पूरा रंगीन। झक्कास। सभी अखबारों के सभी संस्करणों में भी यह पूरे पन्ने का विज्ञापन छपवाया गया था और सूत्र बताते हैं कि न्यूज चैनलों में भी मोटी रकम खर्च करके यह विज्ञापन चलवाया गया था।
लेकिन चमत्कार यह केवल नहीं है, बल्कि सबसे बड़ा चमत्कार तो यह हुआ कि तीन हफ्ता पहले जो यही शशिमा सिंह ने अपने विज्ञापनों में अपने आप को योगी का समर्थक छपवाया था, उन्होंने अपना प्रमोशन खुद ही करवा लिया। आज के विज्ञापन में शशिमा सिंह ने खुद को योगी का समर्थक और भाजपा विचारक के तौर पर पेश किया है। जबकि तीन हफ्ता पहले ऐसे ही विज्ञापन में शशिमा सिंह ने स्वयं को केवल योगी समर्थक घोषित किया था।
मतलब यह कि शशिमा सिंह ने अपने इस नये विज्ञापन में यह साबित करने की पुरजोर कोशिश की है कि भाजपा में ऐसे विज्ञापनों में भारी-भरकम रकम फूंक कर भी भाजपा-विचारक बनने की सम्भावनाएं सुखद हैं। सिर्फ टेंट में पैसा होना चाहिए। बेशुमार रकम। और इसी ताकत पर शशिमा सिंह ने खुद पर भाजपा-विचारक का तमगा खुद पर टांग लिया।
हालांकि शशिमा सिंह उन आरोपों को खारिज करती हैं कि उनके विज्ञापनों पर करीब एक करोड़ रूपयों का खर्चा आया है, लेकिन यह भी कुबूल करती हैं कि उन्हें यह पता नहीं है कि उनके इस अभियान पर कुल कितना का खर्चा आया है। उनका कहना है कि यह पूरी रकम उनके पारिवारिक मित्रों ने खर्च की है, लेकिन वे मित्र कौन हैं, वे इसका खुलासा नहीं करना चाहतीं। बस परिवार के लोग ही हैं हमारे साथ, शशिमा सिंह ने बताया। समस्तीपुर में रेल में इंजीनियर है शशिमा सिंह के पति, लेकिन उनसे सम्पर्क नहीं हो पाया। हैरत की बात तो यह है कि इस पूरी भारी-भरकम रकम को फूंकने के पीछे मकसद क्या था, यह तो समझ में आता है, लेकिन यह गुत्थी सुलझना बाकी है कि इतनी बड़ी रकम किसने खर्च की।
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