मेरा देश तरक्की कर रहा है?
ये उसकी चीख नही शायद राग-ए-जश्न कर रहा है,
ख्वाहिशे पूरी करता था जो परिवार की, अब तो बस पेट भर रहा है,
वो नादान कैसे समझे, की साहेब मेरा देश तरक्की कर रहा है ।।
डरता है वो उठते ही, न जाने क्या फ़रमान आयेगा,
दाल महंगी होगी या गैस बढ़ेगा, जाने क्यूँ वो डर रहा है,
महँगाई, ग़रीबी और अत्याचार सब सह कर भी हस रहा है,
शायद उसे समझ नही, की साहेब मेरा देश तरक्की कर रहा है।।
हल उठाकर बैलों के संग खेतो को वो चल देता है।
पसीना बहाकर जमीं पर, अनाज नही उम्मीद के बीज बोता है।
आत्मदाह न कर पायेगा , बारिश की दुआ वो कर रहा है,
कर्ज़ खा गई उसके साथी को, फिर भी न जाने क्यूँ अब उसको लग रहा है , की साहेब मेरा देश तरक़्क़ी कर रहा है।।
साहब नेता सब घर आये, खाना खाया फ़ोटो खिंचाये,
कुछ पल बिताया, उम्मीद जगाई बड़े सपने दिखाये।
अब आएंगे अच्छे दिन ऐसा ही कुछ सोच रहा है,
शायद उसे भी अब लग रहा है , की साहेब मेरा देश तरक्की कर रहा है।।
बैंक की भीड़ में खड़ा है, कुछ कमाई बचाने को,
इस रक़म की ज़रूरत पड़ेगी , ब्याह लाड़ली का करने को।
जब वक़्त आया ब्याह का, आधा पैसा बैंक खा गई ,
कैसे विदा होगी अब लाड़ो, गम में बैठा सोच रहा है
लेकिन वो पागल क्या समझे ,की साहेब....।।
न चाहिए उसे भाषण न वादे न ही 56 इंच का सीना,
वो कर लेगा अपने घर का गुजारा ,एक कर के खून पसीना।
महँगाई ना दूर हुई उसकी, कमाई पर भी फ़न कोई मार रहा है,
अब बस भी करो , शायद वो नही समझ पायेगा,
की साहेब मेरा देश तरक्की कर रहा है।।
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