राहुल गांधी की गैर मौजूदगी में मीरा कुमार ने भर दिया नामांकन और फिर...


एसपी मित्तल
28 जून को यूपीए की उम्मीदवार मीरा कुमार ने आखिर राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन दाखिल कर दिया। हालांकि इस अवसर पर 17 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। लेकिन कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी नजर नहीं आए। हालांकि उनकी मम्मी श्रीमती सोनिया गांधी उपस्थित रहीं। सब जानते हैं कि मीरा कुमार के चयन में कांग्रेस की अहम भूमिका है।
राहुल गांधी किस मौके पर उपस्थित रहे या न रहे, यह कांग्रेस का आंतरिक मामला है। लेकिन राहुल गांधी एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के बड़े नेता है। इसलिए उनकी मौजूदगी और गैर मौजूदगी राजनीति में मायने रखती है। आज भाजपा के बाद देश में कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी है। चुनाव में भी प्रचार की कमान राहुल गांधी के पास ही होती है। माना तो यही जाता है कि अब कांग्रेस में सारे फैसले राहुल गांधी करते हैं।
ऐसे में मीरा कुमार के नामांकन के समय राहुल की गैर मौजूदगी अनेक सवाल खड़े करती हैं। क्या मीरा कुमार की उम्मीदवारी पर राहुल गांधी की सहमति नहीं है? या फिर राहुल गांधी राष्ट्रपति चुनाव को महत्वपूर्ण नहीं मानते? एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के सामने विपक्ष ने मीरा कुमार को साझा उम्मीदवार बनाया है। अब विपक्ष का यह प्रयास है कि मीरा कुमार को अधिक से अधिक वोट मिल सके। चूंकि एनडीए और यूपीए के मतों में ज्यादा अंतर नहीं है। इसलिए भाजपा के नेता जोड़-तोड़ की राजनीति भी कर रहे हैं।
यूं तो बिहार के सीएम नीतिश कुमार यूपीए के साथ ही है, लेकिन नीतिश कुमार ने एनडीए के उम्मीदवार को समर्थन देने की घोषणा की है जबकि नीतिश कुमार कांग्रेस और राजद के समर्थन से ही सरकार चला रहे हैं। कहा जा रहा है कि गुजरात में कांग्रेस के असंतुष्ट नेता शंकर सिंह बाघेला राहुल गांधी से मिलने का इंतजार कर रहे हैं। यदि अहमद पटेल ने दखल नहीं दिया होता तो अब तक बाघेला 30 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ चुके होते।
राहुल गांधी भले ही अपनी नानी से मिलने के लिए इटली में हो, लेकिन बाघेला कांग्रेस के 30 विधायकों के वोट रामनाथ कोविंद को दिलवा सकते हैं। क्या कांग्रेस के इन सब मसलों को निपटाने की जिम्मेदारी राहुल गांधी की नहीं है? जब देश में राष्ट्रपति चुनाव हो रहे हो, तब इतने लंबे समय के लिए राहुल गांधी विदेश में रहे तो फिर चर्चा होती है। राहुल गांधी के विदेश में रहने को लेकर कई बार कांग्रेस में भी असमंजस की स्थिति होती है। यदि राहुल गांधी को वाकई कांग्रेस का नेतृत्व करना है तो उन्हें कार्यकर्ता के साथ रहना पड़ेगा। 

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