जानिए किसने देखा था जीएसटी का सपना और अब क्यों हो रहा है पूरा?


नई दिल्ली। जीएसटी, एक ऐसा टैक्स जो लगभग 17 सालों से इंतजार कर रहा था. विडंबना ऐसी कि सत्ता पक्ष में कांग्रेस रही तो बीजेपी ने विरोध किया और जब बीजेपी रही तो कांग्रेस ने. मोदी सरकार भी सत्ता संभालने के बाद से इस कर सुधार को लागू करने के लिए प्रयासरत थी लेकिन उसे सफलता अब मिली है करीब दो साल बाद. 30 जून की आधी रात भारत में बहुप्रतीक्षित जीएसटी लॉन्च हो जाएगा. आज हम आपको बताते हैं कि जो बीजेपी आज जीएसटी… जीएसटी कर रही है कभी उसने इसका विरोध किया था. और जो कांग्रेस आज इससे मुंह फेर कर खड़ी है उसी ने सबसे पहले इसे लागू करने की बात की थी, उसी ने जीएसटी का सपना देखा था.

आपको बता दें कि जीएसटी जैसे कर सुधार की शुरुआत भारत में उस वक्त हुई थी जब देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे और वित्त मंत्रालय संभाल रहे थे पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह. वी पी सिंह ने फरवरी 1986 में मोडिफाइड वैट (MODVAT) इंट्रोड्यूस किया था. यह काफी कुछ जीएसटी जैसा था. इसने देश के लिए एकमात्र टैक्स सिस्टम की नींव रख दी थी.

प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर में सुधारों का सुझाव देने के लिए नियुक्त राजा चेलिया कमेटी द्वारा अपनी रिपोर्ट पेश करने के बाद पी वी नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह ने राज्य स्तर पर वैल्यू एडेड टैक्स के बारे में शुरुआती चर्चा शुरू की थी.

ठीक ऐसे ही जब यशवंत सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी के वित्त मंत्री थे, तो 1 जनवरी 2000 से राज्यों के बीच बिक्री कर की लड़ाई को समाप्त करने के लिए और विभिन्न वस्तुओं के बिक्री करों के लिए एक समान दर रखने के लिए निर्णय लिया था. अधिक महत्वपूर्ण बात, कार्यान्वयन की निगरानी करने के लिए, सिन्हा ने 2000 में राज्य वित्त मंत्रियों की एक कमेटी गठित की थी जिसकी अध्यक्षता तत्‍कालीन पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री असीम दासगुप्‍ता ने की थी. दासगुप्‍ता इस कमेटी के 2011 तक अध्‍यक्ष रहे.

जीएसटी के लिए सबसे अहम रहा 2004, जब  तत्‍कालीन वित्‍त मंत्रालय के सलाहकार विजय एल केलकर की अध्‍यक्षता वाली टास्‍क फोर्स ने कहा कि देश की मौजूदा टैक्‍स सिस्‍टम में कई खामियां हैं. उन्‍होंने ही देश हित में एक व्‍यापक जीएसटी का सुझाव दिया था हालांकि उन्होंने राज्यों के लिए न्यूनतम 7% और केन्द्र के लिए न्यूनतम 5% दर का सुझाव दिया था. इसके बाद देश में समान टैक्स पर नए सिरे से चर्चा शुरू हुई.
2004 में एनडीए के हार के बाद जब यूपीए सत्ता में आई और मनमोहन सरकार में पी. चिदंबरम वित्त मंत्री बने तो उन्होंने भी जीएसटी पर काम जारी रखा. उन्होंने राज्यों को वित्तीय सहायता मुहैया कराने के उद्देश्य से वैट की शुरुआत के लिए अभियान चलाया. चिदंबरम ने अपने कार्यकाल के दौरान सभी बजट भाषणों में जीएसटी लाने का संकेत दिया. उन्होंने 1 अप्रैल 2010 से जीएसटी लागू करने की घोषणा की थी. लेकिन राज्यों के विरोध को लेकर बातचीत रफ्तार नहीं पकड़ नहीं पाई.
2009 में भारत के नए वित्‍त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने जीएसटी के बेसिक स्‍ट्रक्‍चर की घोषणा की और इसे 1 अप्रैल 2010 से लागू करने के सरकार के लक्ष्‍य को दोहराया. 2009 में ही असीम दासगुप्‍ता कमेटी ने जीएसटी पर अपने पहले डिसकशन पेपर को जनता के सामने रखा और इस पर सुझाव मांगे. इसके बार फरवरी 2010 में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए यूपीए सरकार ने राज्‍यों में कमर्शियल टैक्‍स के कम्‍प्‍यूटराइजेशन प्रोजेक्‍ट की शुरुआत की. इसे ही जीएसटी की नींव के तौर पर माना गया.
मार्च 2011 में मनमोहन सरकार ने जीएसटी लागू करने के लिए लोक सभा में संविधान संशोधन विधेयक पेश किया. विपक्षी दलों खासकर बीजेपी ने इसका जमकर विरोध किया. जिसके बाद इस विधेयक को पूर्व वित्‍त मंत्री यशवंत सिन्‍हा की अध्‍यक्षता वाली संसद की स्‍थायी समिति के पास भेज दिया गया. 2012 में स्थायी समिति ने इस पर चर्चा की और कुछ हिस्सों पर आपत्ति दर्ज कराई. नवंबर 2012 में तत्कालीन वित्‍त मंत्री चिदंबरम ने राज्‍यों के वित्‍त मंत्रियों के साथ बातचीत की जिसके बाद सभी मुद्दों को सुलझाने के लिए 31 दिसंबर 2012 की समय सीमा तय की गई.
सबसे खास बात हुई 2013 में, अगस्त में स्‍थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपी. पैनल ने इस विधेयक को कुछ संशोधनों के साथ अपनी मंजूरी दी. इसके बाद इस बिल का बीजेपी द्वारा विरोध शुरू हुआ. अक्टूबर में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने और उनके वित्त मंत्री ने इसका व्यापक विरोध किया. गुजरात के तत्कालीन वित्त मंत्री सौरभ पटेल ने कहा था कि अगर मनमोहन सरकार अध्‍यादेश लाकर जीएसटी लागू करती है तो गुजरात को हर साल 14 हजार करोड़ रुपए का नुकसान होगा.

2014 में सत्ता परिवर्तन के साथ ही कांग्रेस के लिए जीएसटी सपना ही रह गया. लेकिन मोदी और जेटली के दिमाग में भी जीएसटी घर बना चुकी थी. इसी वजह से सत्ता में आने के कुछ ही महीनों बाद दिसंबर 2014 में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में इस बिल को पेश किया. अब विरोध करने की बारी कांग्रेस की थी. कांग्रेस ने इस बिल को स्‍थायी समिति के पास भेजने की मांग की.
मई 2015 में लोक सभा ने जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक को पारित कर दिया लेकिन अगस्त में बिल राज्यसभा में अटक गया. कांग्रेस ने जीएसटी दर पर खुलकर विरोध किया और उसे 18 प्रतिशत से ज्यादा न रखने की मांग की. भारी उठापठक और विरोध के बीच मोदी सरकार ने बिल में चार संशोधन किए जिसके बाद कांग्रेस ने इस पर अपनी सहमति जताई. लेकिन, फिर भी राज्यों ने इसके खिलाफ विरोध के स्वर जारी रखे. हालांकि संसद के दोनों सदनों और बीजेपी शासित राज्यों के विधानसभा में बिल पास होने के साथ गैर बीजेपी शासित राज्यों में भी बिल पास होता चला गया और अब वह 1 जुलाई 2017 से पूरे देश में लागू किया जा रहा है.

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