फ़िल्म शव दर्शकों पर ज्यादा प्रभाव नही छोड़ पाई

निर्माता निर्देशक ओनिर इससे पहले 'माई ब्रदर निखिल', 'चौरंगा' और 'बस एक पल' जैसी फिल्में बना चुके हैं और उनकी फिल्मों को पारिवारिक मनोरंजन की फिल्म नहीं माना जाता है.'शब' भी कोई अपवाद नहीं है और ड्रामा, रोमांस और सस्पेंस से भरी इस फिल्म में शहरी युवाओं के प्यार और उनकी ज़िंदगियों में होने वाली दिक्कतों को दर्शाया गया है. ओनिर हमेशा से समाज की मान्यताओं के लिए 'बोल्ड' माने जाने वाले विषयों पर फिल्में बनाते आए हैं और इस फिल्म में भी वो वेश्यावृत्ति, समलैंगिक संबंधो और विवाहेत्तर संबंधों की बात करते हैं.
फिल्म की कहानी पर लेखक की मेहनत साफ दिखती है लेकिन फिल्म को छोटा रखने के उद्देश्य से फिल्म अपने किरदारों के साथ इंसाफ़ नहीं कर पाती. 'शब' में मौजूद हर किरदार की अपनी एक कहानी है और ये कई शॉर्ट फिल्मों का संकलन लगती है. हालांकि ये स्टाइल देखने में नयापन और रोमांचक लगता है लेकिन दर्शकों के लिए ये कहीं कहीं थोड़ा कन्फयूजन वाला भी हो जाता है.
फिल्म की कहानी पर लेखक की मेहनत साफ दिखती है लेकिन फिल्म को छोटा रखने के उद्देश्य से फिल्म अपने किरदारों के साथ इंसाफ़ नहीं कर पाती. 'शब' में मौजूद हर किरदार की अपनी एक कहानी है और ये कई शॉर्ट फिल्मों का संकलन लगती है. हालांकि ये स्टाइल देखने में नयापन और रोमांचक लगता है लेकिन दर्शकों के लिए ये कहीं कहीं थोड़ा कन्फयूजन वाला भी हो जाता है.

मोहन (आशीष बिष्ट) मॉडल बनना चाहता है और इसके लिए कोशिश कर रहा है. एक मॉडलिंग एजेंसी की मालकिन सोनल मोदी (रवीना टंडन) अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं है और और मोहन को अपने साथ सोने के बदले मॉडलिंग का प्रलोभन देती है.

फिल्म का दूसरा किरदार है रैना या आफिया का किरदार जो एक वेट्रेस है और छिपकर वेश्यावृत्ति कर रही है, रैना का फ्रेंच पड़ोसी बेनोइट (साइमन फ़्रेने) एक समलैंगिक युवक है और किसी जीवनसाथी की तलाश में है. अपनी अपनी सीक्रेट ज़िंदगिया जी रहे और आपस में घुले मिले इन किरदारों को पर्दे पर एकसाथ लाने में हर किरदार के अंत पर थोड़ी थोड़ी कमी रह जाती है.

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